Saturday, 8 July 2017

अध्याय : प्रथम


"सच कह रहीं हूँ मैं...." पसीने पसीने हो रखी रीमा ने अपनी पूरी जान लगाते हुए कहा, " .....मैंने सच में...... वहाँ किसी को देखा ...." " बुरा सपना देखा होगा रीमा !" स्वाति ने अपनी नींद भरी हुई आँखे मलते हुए कहा  " सो जाओ कोई बात नहीं "

" जाओ तुम सब सो जाओ, .....मैं हूँ यहाँ इसके पास  " प्रियंका ने रीमा का हाथ पकड़ के  उसको सांतवना दी  " नहीं हम सब हैं यहाँ ,...... रीमा डरने की कोई बात नहीं है " वरुण ने आगे कदम बढ़ाते हुए कहा  ," नहीं वरुण मैं हूँ यहाँ,.... तुम लोग जाओ " प्रियंका ने ज़ोर डालते हुए दोहराया | " ठीक है, हम जा रहे है .......कोई ज़रूरत पड़े तो आवाज़ ज़रूर दे देना " वरुण ने हलकी मुस्कान के साथ जाने का इशारा किया  " चलो सब ..... " वरुण ने सबको दरवाज़े की ओर रुख़ करने का इशारा किया |
" यार!!... इसको हुआ क्या है?! दो दिन हुए हमें आये हुए यहाँ , और कल भी यही हुआ था .......कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं " ,वरुण ने चिंतित स्वर में कहा , " अरे नहीं ये इसके हमेशा के नाटक है , तुम लोगो को नहीं पता " स्वाति ने मुँह बनाते हुए कहा . " नाटक? कैसा नाटक? स्वाति...तुमने उसकी हालत भी देखी थी...!!....कितनी बुरी  तरह डरी हुई थी वो...... वो सच कह रही है मुझे विश्वास है " " हाँ यार..... मुझे भी लगता है रीमा सच कह रही थी , पर पूरी बात समझ नई आई .....," राहुल ने सोचते हुए कहा |

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