Sunday, 13 May 2018

अध्याय: पांच

"तुम्हारे कहने का मतलब क्या है प्रियंका?" वरुण ने असमंजस जताते हुए कहा | थोडा रुक के वरुण बोला, " एक ही सपना रीमा को बार बार आता है?...... इतने साल बीत गये , और एक ही सपना ? ..... बात कुछ समझ नहीं आई मुझे "

प्रियंका ने सर नीचे झुकाया और बोली, " वरुण मुझे इतना ही पता है, ज्यादा नहीं जानती मैं |" और वो उठ के वापस जाने लगी | वरुण ने पुनः उसका रास्ता रोका, " प्रियंका बात को अधूरा मत छोड़ो, शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद ही कर पाऊं|" प्रियंका ने सर उठा के वरुण की ओर देखा, उसे वरुण की आँखों एक विश्वास की चमक सी दिखाई दी|

वो ठहर गयी, वरुण की ओर देखा, और बोली, " रीमा कई दिन तक चैन से सोयी | स्थिति पहले की तरह सामान्य हो गयी | रीमा के पिताजी प्रसन्न थे, उनकी बेटी वापस गहरी नींद सोने लगी थी| पहली रात्री जब वो नहीं चीखी , तो रीमा के पिताजी ने सोचा कुछ दिन और देख लेते है, डॉक्टर को दिखने जाने का उन्हें कोई तथ्य नहीं महसूस हुआ |"

"धीरे धीरे घरवाले भूल गये, सब कुछ सामान्य हो गया | कुछ साल बीत गये, रीमा थोड़ी और बड़ी हो गयी | एक दोपहर वो स्कूल से लौटी, तो उसके मुख पर कोई अभिव्यक्ति नहीं थी | वो ना कुछ बोली, ना कोई भाव भंगिमा , खाना खा कर अपने कमरे में चली गयी|" प्रियंका एकदम से रुकी, उसे किसी के आस पास होने का आभास हुआ | वरुण ने प्रियंका को आश्वासन दिया, " कोई नहीं है प्रिया...... मेरा मतलब प्रियंका " वरुण का चेहरा लाल हो गया |




" नहीं वरुण, मुझे ऐसा लग रहा है, कोई हैं यहाँ.....कोई हमारी बातें सुन रहा.."

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